श्री कृष्ण जन्मस्थान मुक्ति अभियान

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हमारे आराध्य भगवान श्री कृष्ण के जन्म स्थान पर बने विशाल केशवदेव मंदिर को तोड़कर मुगल बादशाह औरंगजेब ने उसी मंदिर के मलवे का इस्तेमाल कर एक ईदगाह का निर्माण किया जो कि आज एक कलंक के रूप में विद्यमान है। धर्म रक्षा संघ उस कलंक को वहां से हटाकर उसी ईदगाह वाले स्थान पर भव्य और दिव्य भगवान श्री कृष्ण का मंदिर निर्माण कराने के लिए सड़क से लेकर अदालत तक प्रयासरत है।इस विषय में धर्म रक्षा संघ ने न्यायालय सिविल जज सीनियर डिविजन मथुरा में 23 दिसम्बर सन् 2020 को वाद दायर करके शाही ईदगाह (मस्जिद) हटाकर उस स्थान पर हिन्दुओं का दावा किया है। अखंडब्रह्मांड नायक भगवान श्री कृष्ण(श्री केशव देव) के जन्म होने का गौरव ब्रजभूमि के जिस पुण्य स्थान को प्राप्त है यह मथुरा नगर के पश्चिमी कोने पर कटरा केशवदेव नामक मोहल्ले में स्थित है।भगवान श्री कृष्ण का प्रचलित नाम केशव देव होने के कारण उस स्थान का नाम कटरा केशव देव रखा गया।यह स्थान युगों युगों से ब्रजभूमि के प्रधान देव श्री केशव देव (भगवान श्री कृष्ण) की स्मृति संजोए हुए है।ऐतिहासिक दृष्टि से इस स्थान का बड़ा महत्व है यहाॅं से प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों के अतिरिक्त विदेशी यात्रियों के वर्णन के साथ हिंदू धर्म ग्रंथों तथा अन्य पुष्ट प्रमाणों से इस बात का पता चलता है कि भगवान श्री कृष्ण के जन्म स्थान पर समय-समय पर अनेक विशाल मंदिरों का निर्माण किया गया।श्री कृष्ण जन्मस्थान एवं उसके समीप से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व की कलाकृतियां प्राचीन सिक्के ढालने के सांचे इस भूमि से प्राप्त हुए हैं,अन्य भी कई प्रकार की कलाकृतियां एवं मूर्तियां जो इस स्थान से प्राप्त हुई है वह मथुरा के संग्रहालय में आज भी सुरक्षित और विद्यमान हैं।इस स्थान की प्राचीनता का यह ठोस प्रमाण है। देवकीनंदन भगवान श्री कृष्ण का प्रथम मंदिर उनके प्रपौत्र वज्रनाभ ने इसी कारागार वाले स्थल पर बनवाया था जहां उनका जन्म हुआ इसके बाद भगवान केशव देव का मंदिर विधर्मी आक्रांताओं के द्वारा तीन बार तोड़ा गया और चार बार बनवाया गया। आगे चलकर कुशाण हमलों में मंदिर नष्ट होने के बाद गुप्त काल में सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने एक विशाल और भव्य मंदिर का निर्माण कराया इस मंदिर को मुस्लिम आक्रांता महमूद गजनवी ने वर्ष सन् 1017 ईस्वी में लूटने के बाद क्षतिग्रस्त कर नेस्तनाबूद कर दिया तत्पश्चात महाराज विजयपाल देव तोमर के शासनकाल में हिंदू जाट शासक जाजन उर्फ जज्ज सिंह जो कि मथुरा क्षेत्र स्थित मगोर्रा के सामंत शासक थे ने तीसरी बार मंदिर का निर्माण सन् 1150 ईस्वी में कराया इस विशाल एवं भव्य मंदिर को मुस्लिम आक्रांता सिकंदर लोधी द्वारा 16 वीं सदी में क्षतिग्रस्त कर नष्ट कर दिया गया, तदोपरांत हिंदू जनमानस के उस आस्था स्थल पर सन 1618 में ओरछा के राजा हिंदुत्व के परम अभिमानी बुंदेला नरेश वीरसिंह जूदेव ने केशव देव के विशाल एवं भव्य मंदिर का निर्माण कराया उस समय इसके निर्माण पर 33000 रुपये खर्च हुए अपनी भव्यता पच्चीकारी और अलंकरण की विशेषता के कारण यह मंदिर उत्तर भारत के तत्कालीन मंदिरों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था इसके चारों ओर ऊंची ऊंची दीवारें एवं चारदीवारी का निर्माण कराया गया।इसके पश्चिम की ओर बनी हुई कोठियों के भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं,वर्तमान समय में जो गर्भ ग्रह श्री कृष्ण जन्मस्थान के रूप में बताया जाता है वह भी सन् 1944 के बाद हुई खुदाई में प्रगट हुआ था। यह उस प्राचीन केशव देव मंदिर का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है बाकी सारे मंदिर का भाग तो आज भी ईदगाह मस्जिद के कब्जे में है। सन् 1669 ईस्वी में औरंगजेब ने फरमान जारी किया कि काफिरों के सारे मंदिर पूजा घर तथा गुरुकुल पाठशाला तोड़ फोड़ दी जाएं और उनके धार्मिक कार्य पूजा-पाठ,पठन पाठन पूरी तरीके से बंद कर दिए जाएं।औरंगजेब ने एक दूसरा और भयंकर आपत्तिजनक फरमान जारी किया कि केशव देव मंदिर मथुरा को तोड़ने के बाद जो मूर्तियां उसमें से प्राप्त हों उन मूर्तियों को हमारे लाल किले आगरा की दीवानेखास वाली नगीना मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफ्न कर दिया जाए जिससे हम और हमारी रानियां जब भी मस्जिद में नमाज पढ़ने जाएं तो सीढ़ियों के नीचे दबी मूर्तियों को अपने पैरों से कुचलते हुए जाएं। विडम्बना देखिए आज भी हमारे आराध्य भगवान केशव देव के श्री विग्रह मस्जिद की सीढ़ियों में दबे हुए हैं जिन पर प्रतिदिन न जाने कितने लोग पांव रखकर ऊपर चढ़ते हैं यह हिंदू आस्था के साथ क्रूरतम खिलवाड़ है।सन 1669 ईस्वी में औरंगजेब स्वयं मथुरा वृन्दावन के मंदिरों को तोड़ने के लिए यहां आया था तत्कालीन हिंदू समाज के साधु संतों एवं धर्माचार्यों ने सनातन धर्म एवं केशव देव मंदिर की रक्षा हेतु औरंगजेब की विशाल सेना का अपने स्तर पर विरोध किया मगर हजारों की संख्या में हिंदुओं को और साधु-संतों को शहीद होना पड़ा। अंततः 56 वर्ष पूर्व राजा वीर सिंह देव द्वारा बनाए गए केशव देव मंदिर सहित वृन्दावन के भी अनेक मंदिरों को तोड़कर नष्ट या क्षतिग्रस्त कर दिया गया।श्री केशव देव मंदिर के गर्भ गृह के ऊपर पूर्व की ओर आधे से अधिक भाग पर मंदिर से निकले पत्थरों का उपयोग करके एक बड़ी शाही ईदगाह(मस्जिद) बनाई गई जो आज तक हिंदू समाज के लिए एक कलंक के रूप में विद्यमान है। श्री कृष्ण जन्मस्थान के शेष पश्चिमी भाग को कृष्ण चबूतरा कहा जाता है जहां वर्तमान में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने वर्तमान में नवीन केशव देव मंदिर का निर्माण कराकर हिन्दुओं के आंसू पोंछने का मात्र प्रयास किया है।दिनांक 05/04/1770 को मराठों ने उत्तर भारत में अपना प्रभुत्व जमाते हुए मुस्लिमों को युद्ध में हराकर सम्पूर्ण मथुरा को अपने कब्जे में ले लिया इस भीषण युद्ध को इतिहास में वैटल आफ गोवर्धन के नाम से जाना जाता है।मराठा राजा महादजी सिंधिया ने मथुरा को अपना प्रधान आवास स्थल बनाया उन्हें मथुरा से बड़ा प्रेम था उन्होंने ही यमुना तट पर पक्के घाट बनवाने के अतिरिक्त श्री कृष्ण जन्म स्थान के समीप प्राचीन पोतरा कुंड का नवीन रूप से पुनर्निर्माण कराया।महादजी सिंधिया की हार्दिक इच्छा थी कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर विशाल केशव देव मंदिर बनाया जाए मगर काशी के पंडितों द्वारा भ्रमित किए जाने के कारण उन्हें अपनी महत्वाकांक्षी योजना त्याग पड़ी।महादजी सिंधिया की मृत्यु के पश्चात कटरा केशव देव की स्थिति और दयनीय हो गई वर्ष 1803 ईस्वी में अंग्रेजों ने मराठों को परास्त कर संपूर्ण मथुरा पर अपना अधिकार जमा कर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन स्थापित कर लिया। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सन् 1815 में ईस्वी में कटरा केशव देव की भूमि को जिसे हम श्रीकृष्ण जन्मस्थान के नाम से जानते हैं जिसका रकबा 13 एकड़ 37 डेसिमल था को नजूल की भूमि घोषित कर खुली नीलामी में बेच दिया गया,तब उस संपूर्ण 13.37 एकड़ भूमि को बनारस के राजा पटनीमल ने खरीद लिया तथा केशव देव की उक्त भूमि जो कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म स्थान है उस पर बनी अवैध शाही ईदगाह(मस्जिद) में उस समय न तो नमाज पढ़ी जाती थी नहीं मुस्लिम समाज द्वारा किसी प्रकार की धार्मिक गतिविधि ही की जाती थी कटरा केशव देव में बनी अवैध शाही ईदगाह वाले स्थान सहित समस्त 13.37 एकड़ भूमि पर मालिकाना हक प्राप्त करने के लिए 9 मार्च सन् 1921 ईस्वी में अदालत में एक केस मुस्लिम समाज द्वारा दायर किया गया यह केस 16 मार्च 1923 को साक्ष्य के अभाव में निरस्त हो गया,अदालत ने हिंदू समाज के पक्ष में निर्णय दिया। मुस्लिम समाज को इस केस में करारी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि राजा पटनीमल श्री कृष्ण जन्म स्थान पर भगवान केशव देव का मंदिर बनाना चाहते थे मगर अपने जीवन काल में यह इच्छा पूर्ण न कर सके। सन् 1928 ईस्वी में राजा पटनीमल के वंशजों ने मुस्लिम समाज पर अदालत में केस किया कि मुसलमान हमारी जगह श्री कृष्ण जन्मस्थान पर जबरन कब्जा करने की नीयत से हमारे स्वामित्व वाले क्षेत्र में अंदर घुसने का प्रयास कर रहे हैं।मुसलमान सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों जगह से हार गए 21 फरवरी सन 1935 को हाईकोर्ट से राजा पटनीमल के वंशजों यानी श्री कृष्ण जन्मस्थान की रक्षा करने वाले हिंदुओं को जीत मिली। मुस्लिम समाज की प्रारम्भ से लेकर आज तक चले सभी अदालती केस में बुरी तरह हार हुई है। स्वतंत्रता से पहले जब पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने श्री कृष्ण जन्मस्थान की ऐसी दुर्दशा देखी तो उन्हें अत्यंत दुख हुआ उन्होंने तत्कालीन प्रसिद्ध उद्योगपति श्री जुगल किशोर बिरला जी की आर्थिक मदद से राजा पटनीमल के उत्तराधिकारियों से कटरा केशव देव की उक्त भूमि दिनांक 8 फरवरी सन् 1944 को ₹13400 रुपये में क्रय कर ली।मालवीय जी के जीवन काल में इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कार्य ना होने के बाद भी मालवीय जी की इच्छा अनुसार श्री जुगल किशोर बिरला ने वर्ष 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की जिसके अध्यक्ष श्री गणेश वासुदेव मावलंकर एवं सचिव श्री वियोगी हरि बनाए गए।क्रय की गई 13.37 एकड़ भूमि उक्त ट्रस्ट के माध्यम से भगवान केशव देव की सेवा में सौंप दी गई।उक्त ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य भी कटरा केशव देव की उस भूमि को अपने कब्जे में लेकर एक भव्य और दिव्य मंदिर निर्माण करना था। सन् 1944 में राजा पटनीमल के वंशजों द्वारा 13.37 एकड़ भूमि पंडित मदन मोहन मालवीय जी को बेचने के विरोध में मुस्लिम समाज ने फिर से अदालत में सन् 1946 में इस सौदे के खिलाफ डाला, मुस्लिम समाज ने दावा किया कि उक्त जमीन की बिक्री गैरकानूनी और गलत है मगर 21 जनवरी 1953 को यह दावा भी निरस्त हो गया अंततः मुसलमानों को मुंह की खानी पड़ी।इस दौरान श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट द्वारा उक्त 13.37 एकड़ जमीन के पश्चिमी भाग में भगवान श्री केशव देव के वर्तमान विशाल मंदिर का निर्माण कार्य पूर्णता की ओर अग्रसर था। उसी दौरान वर्ष 1967 में श्री कृष्ण जन्मस्थान के प्रतिदिन होने वाले कार्यों को संपादित करने के लिए एक संस्था श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ का गठन किया गया।कालांतर में इस संस्था का नाम श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान कर दिया गया,इस संस्थान में कार्य करने वाले लगभग सभी वेतन भोगी कर्मचारी स्तर के लोग थे इन सभी लोगों को पारिश्रमिक प्राप्त होता था।यह संस्था किसी भी प्रकार से श्री कृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ भूमि की मालिक नहीं थी इस संस्था का कार्य केवल दैनिक रोजमर्रा की व्यवस्था देखना था।एक पूर्व नियोजित षडयंत्र के तहत श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने अनाधिकार रूप से तत्कालीन शासन एवं अधिकारियों के दबाव में आकर मुकदमा संख्या 43 सन् 1967 शाही मस्जिद ईदगाह पर दावा दायर कर दिया जिसमें बड़ी चतुराई से कोर्ट और हिंदू समाज को भ्रमित करने के लिए अदालत से प्रार्थना की गई थी कि मुस्लिम समाज के लोग हमारी भूमि श्री कृष्ण जन्मभूमि में जबरन घुस रहे हैं,कृपया मुसलमानों को श्री कृष्ण जन्मस्थान में अवैध कब्जा करने से रोका जाए पूर्व नियोजित योजना के अनुसार 12/10/1968 को श्री कृष्ण सेवा संस्थान ने ईदगाह मस्जिद के मुस्लिम समाज से अवैध रूप से समझौता कर लिया कि जो पक्ष जहां तक घुस आया है वह सारी जमीन समझौते में उसी की हो गई। जितनी जगह मुसलमानों ने श्री कृष्ण जन्मस्थान की अवैध रूप से कब्जा की थी वह सब बड़ी बेशर्मी के साथ ईदगाह मस्जिद को दे दी गई।इस पर श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को कोई आपत्ति नहीं थी।श्री कृष्ण जन्मस्थान के मामले में हिंदू समाज के साथ यह सबसे बड़ा धोखा छलावा एवं सोची समझी साजिश थी। श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान न तो उस संपत्ति का मालिक था ना ही उसके पास कोई भी समझौता करने का अधिकार था।यहां तक कि श्री कृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट की ट्रस्ट डीड के प्रावधानों के अनुसार ट्रस्ट की किसी भी संपत्ति को हस्तांतरित करने विक्रय करने या किसी भी समझौते के तहत छोड़ देने का अधिकार किसी ट्रस्टी तक को नहीं है संपूर्ण संपत्ति के मालिक एकमात्र भगवान श्री केशव देव विराजमान हैं।श्री कृष्ण जन्मस्थान के गर्भ ग्रह पर बनी अवैध शाही ईदगाह(मस्जिद) पूरी तरीके से अवैध है एवं हिंदू समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली है।जो स्थान आज भी मुस्लिम समाज के कब्जे में है उस ईदगाह वाले स्थान का भूमि टैक्स आज भी श्री कृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के द्वारा दिया जाता है।हिंदू समाज चाहता है कि जल्द ही इस शाही ईदगाह (मस्जिद) को भगवान श्री कृष्ण के जन्म स्थान से हटाकर अन्यत्र कहीं भी ले जाया जाय। भगवान श्री केशव देव विराजमान के अलावा धर्म रक्षा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सौरभ गौड़,यूनाइटेड हिंदू फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जयभगवान गोयल,मथुरा के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजेंद्र माहेश्वरी एडवोकेट एवं श्री महेंद्र प्रताप सिंह एडवोकेट ने दिनांक 23/12/2020 को न्यायालय सिविल जज सीनियर डिविजन मथुरा में उक्त समझौते को रद्द करने एवं मस्जिद ईदगाह को हटाकर श्री कृष्ण जन्मस्थान को इसके असल मालिक ठाकुर केशव देव को सौंपने का वाद दायर किया जिसे अदालत ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया।धर्म रक्षा संघ के द्वारा दायर वाद ऐसा प्रथम वाद था जिसे अदालत ने स्वीकार किया,इसके बाद अनेक कृष्ण भक्तों ने अपने अपने तरीके से अदालत में वाद दायर किए धर्म रक्षा संघ अपने सहयोगी अधिवक्ताओं,संत महात्माओं,धर्माचार्यों एवं श्री कृष्ण भक्तों के मार्गदर्शन और सहयोग से श्री कृष्ण जन्मस्थान को मुक्त कराने का संकल्प ले चुका है।वृन्दावन में वर्ष 2021 के कुंभ मेला में 20 मार्च 2021 को विधिवत रूप से इसकी घोषणा धर्म संसद में कर दी गई है। आने वाले समय में कानूनी कार्यवाही के अलावा श्री कृष्ण जन्मस्थान मुक्ति अभियान और आंदोलन संपूर्ण भारतवर्ष में चलाया जाएगा और उम्मीद है कि जल्द ही मस्जिद ईदगाह के स्थान पर भव्य श्री केशव देव मंदिर बनाया जाएगा।इस आंदोलन में तन मन धन से सहयोग कर आप भी श्रीकृष्ण जन्मस्थान मुक्ति अभियान में अपनी आहुति प्रदान कर एक सच्चे सनातनी होने का गौरव प्राप्त कर सकते हैं।

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