धर्म रक्षा संघ सनातन संस्कृति के संवर्धन एवं लोक कल्याण हेतु समय समय पर धर्म यात्राओं का आयोजन करता है, जिसमें मामूली शुल्क जमा करके कोई भी सनातनी हिन्दू धर्म यात्रा कर सकता है। धर्म यात्रा के अंतर्गत तीर्थ यात्रा का हिन्दू संस्कृति और हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इसलिए सनातन धर्म से संबंधित हर मनुष्य की दिली इच्छा रहती है कि वह अपने जीवन में भारत के सभी तीर्थो के दर्शन करके अपने जीवन को सफल करे। तीर्थ यात्रा के लिए मनुष्य अपना घर बार बच्चे छोड़कर यात्रा पर निकल जाता है, कभी कभी तो वह अपने जीवन भर की सारी सम्पत्ति को भी एक बार में न्यौछावर करने के लिए तैयार हो जाता है। सवाल यह उठता है कि तीर्थो में ऐसा क्या है। जिसके लिए मनुष्य यह त्याग और बलिदान देने के लिए तैयार हो जाता है। और इस त्याग और बलिदान की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है।सवाल यह उठता है कि तीर्थो में ऐसा क्या है। जिसके लिए मनुष्य यह त्याग और बलिदान देने के लिए तैयार हो जाता है। और इस त्याग और बलिदान की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है।इसे मानव के जीवन से जोड़कर देखते है। संसार में मानव के जीवन के चार प्रमुख लक्ष्य माने जाते है। जिसको पूर्ण करने हेतु मनुष्य का पृथ्वी पर जन्म हुआ है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।इन चारो में अर्थ (धन) तो तीर्थ यात्रा करने में खर्च होता है। अत: इसकी प्राप्ति तीर्थो में नही होती है। सीधी भाषा में कहा जाए तो चाहे आप कितने भी तीर्थो के दर्शन करते रहो वहा आपको धन की प्राप्ति नही हो सकती। धन, राज-भोग, विलास इन सब की कर्मो और भाग्य से प्राप्ति होती है। धर्म, काम और मोक्षं इन तीनो की प्राप्ति तीर्थ यात्रा से हो जाती है। लोगो की तीरथ यात्रा करने के पिछे अगल अलग मंशा होती है। जो मनुष्य सात्विक है। वो केवल मोक्ष के लिए तीर्थ यात्रा करते है। जो व्यक्ति सात्विक और राजसी वृत्ति के है। वे धर्म के लिए तीर्थ यात्रा करते है। और जो व्यक्ति केवल राजसी वृत्ति के है। वे संसारिक और परलौकिक कामनाओ की सिद्धि के लिए तीर्थ यात्रा करते हैं।परंतु जो व्यक्ति निष्काम भाव से यात्रा करते है। केवल उन्हें ही मोक्षं प्राप्त होता है। जो व्यक्ति सकाम भाव से तीरथ यात्रा करते है।उन्हे इस लोक में स्त्री- पुत्र,सुख, वैभव आदि और परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती है। परंतु उन्हे मोक्षं प्राप्त नही हो सकता। इस संसार में जितने भी तीर्थ हैं वो सभी भगवान और भक्तो के साथ से ही बने है। कहने का मतलब यह है कि भक्त बिना भगवान नहीं, भगवान बिना भक्त नहीं, और इन दोनो के बिना तीर्थ नही। तीर्थ यात्रा का असली मकसद तो आत्मा का उद्धार करना है। इस लोक और परलोक के भोगो की प्राप्ति के लिए और भी बहुत से साधन हैं। इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कि वह भोगों की प्राप्ति के लिए तीरथ यात्रा न करे। बल्कि आत्मा के कल्याण के लिए तीर्थ यात्रा करे।जो लोग आत्मा के कल्याण के लिए श्रद्धा व भक्तिपूर्वक नियम का पालन करते हुए तीर्थ यात्रा करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति के साथ अन्य लाभ भी होता है।तीर्थ किसे कहते हैं उस नदी, सरोवर, मंदिर या पुण्य भूमि को तीर्थ कहा जाता है। जहां ऐसी दिव्य शक्तियां है कि उनके संपर्क में जाने से मनुष्य के पाप अज्ञात रूप से नष्ट हो जाते हैं।हर हिन्दू के लिए तीर्थ करना है पुण्य कर्म है। तीर्थों में चार धाम की यात्रा करना जरूरी है। अत: जिसने तीर्थ यात्राएं नहीं की उसका जीवन अधूरा है। तीर्थ परिक्रमाएं:- तीर्थ यात्रा के दौरान कई तरह की परिक्रमाएं की जाती है। सभी परिक्रमाओं के करने के अलग अलग समय होते हैं। तीर्थ परिक्रमाएं:- जैसे बृज चौरासी कोस परिक्रमा, अयोध्या, उज्जैन या प्रयाग पंचकोशी यात्रा, राजिम परिक्रमा आदि। इसके अंतर्गत नदी परिक्रमा भी आती है। जैसे नर्मदा, गंगा, सरयु, क्षिप्रा, गोदावरी, कावेरी परिक्रमा आदि। चार धाम परिक्रमा:- जैसे छोटा चार धाम परिक्रमा या बड़ा चार धाम यात्रा। पर्वत परिक्रमा:- जैसे गोवर्धन परिक्रमा, गिरनार, कामदगिरि, तिरुमलै परिक्रमा आदि। तीर्थ यात्रा का महत्व यह भी है कि संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र किसी न किसी तारे की परिक्रमा कर रहा है। यह परिक्रमा ही जीवन का सत्य है। व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही एक चक्र है। इस चक्र को समझने के लिए ही परिक्रमा जैसे प्रतीक को निर्मित किया गया। भगवान में ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे ही सब उत्पन्न हुए हैं,हम उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान सकते हैं कि हमने सारी सृष्टि की परिक्रमा कर ली है। परिक्रमा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है।
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