धर्म रक्षा संघ की ओर से भारत के किसी भी स्थान के साथ विश्व भर में निवास करने वाले सनातन धर्मियों को विशेष सुविधा प्रदान की जाती है जिसके माध्यम से भक्त लोग अपने स्थान पर रहकर ही अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु वृन्दावन,बृजभूमि समेत सम्पूर्ण भारत वर्ष में ओन लाइन पूजा,पाठ,यज्ञ, अनुष्ठान या अन्य किसी भी प्रकार के पुण्य कार्य करा सकते हैं। हमारे पास सभी तीर्थ स्थलों में ज्योतिष, कर्म काण्ड के विशेषज्ञ विद्वानों के साथ प्रमुख मंदिरों एवं स्थानों के सेवाधिकारियों का दल है जो आपकी हर प्रकार की मनोकामनाओं,शुभ संकल्पों एवं धार्मिक भावनाओं की पूर्ति में आपको सहयोग प्रदान करेंगे।ग्रह शान्ति,संतान प्राप्ति,योग्य वर बधू प्राप्ति,ऋण मोचन,जीवन में आये संकटों बाधाओं के निवारण हेतु,धन, ऐश्वर्य एवं यश प्राप्ति हेतु अनेक प्रकार के पूजा पाठ यज्ञ अनुष्ठान आदि करवाये जाते हैं। पूजा हमारी श्रद्धा का प्रतिफल है। जिस किसी देवी, देवता और इष्ट में श्रद्धा होती है,तो उसे पूजने का मन करता है। सगुण उपासक कीे पूजा के लिए एक स्वरूप की आवश्यकता है। निर्गुण उपासना के लिए उपासक की श्रद्धा एक परम-शक्ति में होती है, जिसे हम परमात्मा कहते हैं। इस धरा पर पूजा कैसे शुरू हुई।कुछ लोग रोज पूजा करते हैं और कुछ लोग कभी-कभी। कुछ लोगों के लिए कर्म ही पूजा है तो कुछ लोग व्यक्ति विशेष के पूजन में ही मगन रहते हैं।जो लोग स्वयं पूजा,हवन,यज्ञ, अनुष्ठान करने में असमर्थ होते हैं वह लोग संकल्प लेकर ओन लाइन पूजा कराते हैं।आम आदमी से विशेष आदमी तक कोई भी पूजा फल प्राप्ति के लिए की जाती है। संसार में घर, परिवार और समाज के बीच रहकर की जाने वाली पूजा ही सर्वश्रेष्ठ है। प्रभु की कृपा उन्हीं पर होती है, जो अपने पुण्य कर्मो का सनातन धर्म के अनुसार कुशल संपादन करता है और साथ में निष्काम-भाव से प्रभु की पूजा करता है। ऐसा भक्त अपनी कुशल-क्षेम प्रभु के हाथों में सौंप कर परमानंद में जीता है।पूजा व्यक्ति के अंतर्मन में बैठे अहंकार,भय,असुरक्षा की भावना और किसी भी प्रकार की चिंता को कम कर व्यक्ति के मन में सकारात्मक भाव और मानसिक शांति के साथ आत्मविश्वास पैदा करती है। पूजा मन से और निष्काम की जाए तभी फलीभूत होती है। अगर मन विचलित है तो विधि-विधान से की गई पूजा-अर्चना भी शांति और संतोष नहीं देती।
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